बसन्ती हवा






हवा हूँ हवा हूँ

बसन्ती हवा हूँ

इठलाती बल खाती

अनोखी सदा हूँ

हवा हूँ हवा हूँ

बसन्ती हवा हूँ

कभी बागों से होकर

कभी फूलों से मिलकर

सरसराकर, पेड़ों की बाहों से अक्सर

दिखती नहीं, बस बिखरती सदा हूं

हवा हूँ हवा हूँ

बसन्ती हवा हूँ

कभी तेरे आंचल को

होले से छू कर

तेरी काली लटों से

मैं खेलूं यूं हंसकर

देखो जो मुड़कर

मैं दिखती कहां हूं

हवा हूँ हवा हूँ

बसन्ती हवा हूँ

तेरी सासों की डोरी पे

धीमे से चढ़ कर

तेरे खून की गर्दिश में

साथी इक बन कर

तेरी रूह के सागर में

लहरें उठा कर

तुझे गहरे से छू कर

तेरे सपनों को बुन कर

होती मैं तुझसे 

हर पल जुदा हूं

हवा हूँ हवा हूँ

बसन्ती हवा हूँ

इठलाती बलखाती

अनोखी सदा हूँ

हवा हूँ हवा हूँ

बसन्ती हवा हूँ

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