उपहार
(चित्र: शालिनी सिंह)
वह एक बहुत ही खूबसूरत चेहरा था।
दो साल की एक मासूम
बच्ची का चेहरा।
घुंघराले सुनहरे बाल, शरारत से भरी
आंखें, दूध सा गोरा रंग्।
लेकिन साथ ही उसके फंटे होंठ और मैले पड़े हाथ पैर् साफ
दिखाई पड़ते थे।
सिर्फ एक पुरानी सी फ्रोक लटकाकर वो नन्ही सी जान कैसे नंगे
पैर उस सख्त फुट्पाथ पर खडी थी, ये जान पाना मुश्किल था।
आंचल ने यह सब देखा।
बड़ी बारीकी से।
वह रोज सुबह दौडने के लिये कालेज से बाहर निकलती थी।
लेकिन इस तरफ आज पहली बार आई थी।
इस बीच उस छोटी बच्ची ने अपना एक पैर फुट्पाथ से नीचे रखा।
लाल रंग का एक पोलीथीन सड्क के ठीक बीचोंबीच हवा के थपेडों
से नाच रहा था। वो मंत्रमुग्ध सी उसकी और देख रही थी।
फिर उसने अपना दूसरा पैर सडक पर रखा।
सामने से एक कार तेजी से आ रही थी।
तभी एक अधेड़ उम्र की औरत दौड़ती हुई आई और उसका हाथ पकड कर अपनी ओर खींच ले गई। इससे पहले की वो कुछ समझ पाती, दो करारे थप्पड़ उसके गाल पर पड़ चुके थे। मोटे मोटे आंसू टप टप बहने लगे लेकिन आंखे अभी भी उस लाल पोलीथीन पर टिकीं थीं जो इस समय बिजली के एक पोल पर जा लटका था।
‘मर जाती तो?’ औरत ने
चीख कर कहा और उसे फुट्पाथ पर पडी एक सब्जी की टोकरी की ओर घसीट कर ले गई जहाँ से
वह अपना धंधा करती थी।
आँचल भाग कर वहाँ पहुँची।
‘इसे चोट तो नहीं लगी?’ उसने बच्ची के कंधे पर हाथ रखते हुए पूछा|
‘लग जाती तो अच्छा था। न खुद मरती है,
न मुझे मरने देती है,’ औरत ने भुनभुनाते हुए
कहा।
‘आप इस की माँ हैं?’
‘माँ तो मुई मर गयी इसे जन्मते ही, मैं तो इसकी दूर की चाची हूँ|’
‘आप इसे स्कूल क्यों नहीं भेजती? कुछ आपको भी आराम हो जाएगा|’
इस बार चाची हँस दी।
‘कालेज में पड़ती हो?’
‘जी|’
‘इतना भी नहीं समझती की एक सब्ज़ी बेचने वाली
कमाती कितना होगी|’
‘लेकिन ऐसे फुट्पाथ पर?’
‘हम जैसों का यही ठिकाना है बेटी। हमारी
ज़िदगी इन्हीं सड़कों से शुरु होकर इन्हीं सड़कों पर खत्म हो जाती है|’
तब तक बच्ची ने एक बार फिर सड़क की ओर कदम बड़ाया।
लेकिन इस बार आँचल ने भाग कर उसे गोदी में उठा लिया।
‘तुम्हारा नाम क्या है?’ उसने हंस कर पूछा।
लेकिन तब तक बच्ची का ध्यान उसके बालों में लगे सफेद रंग के
रबर बैंड पर जा चुका था जिसे वह अपने नन्हे हाथों से ट्टोलने लगी।
‘सायना,’ चाची ने प्यार
से कहा,’ ‘सायना नाम है इसका|’
‘हाऊ आर यू सायना?’ कह
कर आँचल ने अपना हाथ आगे किया।
जवाब में सायना ने उसके बड़े हुए हाथ के अंगुठे को मुंह में
डाल कर चूसना शुरु कर दिया।
इस घट्ना के बाद आँचल जब भी सुबह की सैर पर जाती तो वो अपनी
बेबी डोल से जरूर मिलती।सायना भी उससे काफी घुलमिल गई थी और दोनों फुट्पाथ पर सगी बहनों
की तरह खेलतीं।
आँचल एम.बी.ए. फाइंनल वर्ष की छात्रा
थी।
कोर्स खत्म होने में बस कुछ ही दिन बचे थे।
दो साल पहले जब वो यहां पहुंची तब उसका दिल नहीं लगता था।
दिल्ली की लड़की को हैदराबाद की बिरयानी का साथ निभाने में
थोडा वक्त लग गया। लेकिन एक बार जो ये जगह रास आई तो बस मन में उतर गई।
क्या चारमीनार और क्या हुसैन सागर, सब अपने से लगने लगे।
और सायना के साथ ने इस एहसास को और भी गहरा कर दिया।
अब हैदराबाद छोड्ने के ख्याल से ही उसे एक अजीब सा डर लगता
था।
लेकिन होनी बलवान होती है।
अब उसकी एक बैंक में नौकरी लग चुकी थी और ये किनारा छोड़ने
का वक़्त पास ही था।
दो दिन बाद उसकी फेयरवल पार्टी थी।
वो कुछ अलग लगना चाह्ती थी।
इसलिए उस दोपहर उसने श्रेया के साथ सिटी माल जाने का मन
बनाया।
काफी देर की जद्दोजहद के बाद उसे एक गाऊन बहुत पसंद आया।
लेकिन जब रेट्स मालूम किये तो उसका दिल बैठ गया क्योंकि गाऊन
बहुत ही महंगा था।
उसने घर फोन किया।
‘पापा|’
‘यस आँचल|’
‘मैं यहाँ एक माल में आई हुई थी। मुझे एक
डेर्स बहुत पसंद आई लेकिन काफी महंगी है। तो मैं समझ नहीं पा रही के लूं या न लूं|’
‘अगर अच्छी लग रही हो तो ले लो। वैसे भी
तुम्हारा जन्मदिन पास आ रहा है। मैं सोच ही रहा था की तुम्हें क्या उपहार दूं और तुमने
खुद ही मेरी परेशानी दूर कर दी |’
‘थैंक यू सो मच पापा। आप कितने अच्छे हो|’
इतना कहकर जैसे ही उसने मोबाइल बंद किया, उसकी नज़र खिड्की के बाहर सड़क पर गई।
वहाँ एक लड्की एक फटी पुरानी फ्रोक पहनकर फुट्पाथ पर खड़ी
थी।
‘सायना!’ उसे एकदम को
अपनी आखों पर विश्वास न हुआ।
तभी उस लड्की ने फुट्पाथ से नीचे कदम रखा।
सामने से एक बस तेजी से आ रही थी|
आँचल भाग कर सीड़ीयां उतरी।
तब तक बस उन दोनों के बीच आ चुकी थी।
कुछ पलों के लिये लोहे की वो दीवार बनी रही।
फिर जब वो दीवार हटी तो दूसरी तरफ कोई न था।
आँचल वापस माल में घुसी ही थी कि श्रेया दौड़ कर उसके पास
आई।
‘अरे तुम कहाँ गायब हो गई थी?’
तभी काऊंटर पर खडी लड्की ने उससे पूछा,’ मैड्म, क्या मैं इस गाउन को पेक कर दूं?’
आँचल ने बारी बारी से उन दोनों की तरफ देखा।
उसका ध्यान एक बार फिर से नीचे फुट्पाथ पर चला गया।
सायना वहां खड़ी उसे टिकटीकी लगाए देख रही थी।
सामने सड़क पर एक लाल रंग का पोलीथीन हवा में फड़फड़ा रहा था।
इस घटना के कुछ दिन बाद आँचल का जन्मदिन था।
सुबह सुबह ही वो अपना ट्रैक सुट पहनकर सायना से मिलने निकल
पड़ी।
जैसे ही वो फुट्पाथ पर पहुंची उसके पापा का वीडीयो काल आ गया।
‘जन्मदिन मुबारक हो बेटा|’
‘थैंक यू पापा|’
‘लेकिन आज तो तुमने अपनी नई ड्रैस पहननी थी न?’
‘हां मगर उसकी जगह मैंने कुछ ओर खरीदा है|’
‘क्या?’
‘ये देखो|’
कहकर जैसे ही उसने मोबाइल का कैमरा सायना की तरफ किया, उसके पापा को स्थिति समझने में ज़्यादा देर नहीं लगी।
उन्हें एक छोटी सी बच्ची का चेहरा नज़र आया जिसने एक नई
फ्रोक और चमचमाते हुए जूते पहन रखे थे।
‘ये लड्की तो बडी सुंदर है|’
‘बहुत ज़्यादा पापा|’
‘हम सबको आज का दिन हमेशा याद रहेगा|’
‘क्यों पापा?’
‘क्योंकी आज तुम बडी हो गई हो|’
इतनी ही देर में एक लाल रंग का पोलीथीन जो कुछ दिनों से
बिजली के एक पोल पर जा टिका था, लहराकर नीचे गिर पड़ा।
सायना अपने छोटे छोटे हाथों से उसे मारकर हवा में उड़ाने
लगी।
आँचल भी उसके साथ मिलकर खेलने लगी।
दोनों की हंसी की खिलखिलाहट से फुट्पाथ का वो कोना गूंजने
लगा।
आज किसी का जन्मदिन जो था।
Great story to have a thoughtful ear to it. Compassion to love for humanity is above all degree's and education we obtain.
ReplyDeleteThank you so much. The real gift(Uphaar) is the gift of compassion.
DeleteHope it inspires others too.
ReplyDeleteI hope so too. Thanks for reading Uphaar.
DeleteA heart touching and inspiring story beautifully written!
ReplyDeleteThank you so much Manish for reading Uphaar.
DeleteProud to have a friend like Aanchal in my life. While reading, It feels like I am watching this story in real-time.
ReplyDeleteThank you so much sir. Aanchal is privileged to have a mentor like you.
DeleteHeart touching story.Good lession to be kind n considerate towards unprivileged ones.The photograph depicting the storey is very impressive n concerned
ReplyDeleteVery heart touching.It seams to be a real event rather than a story.A very good lession to be kind n considerate towards unprivileged ones.The skech depicting the storey is very impressive n concerned.congrates.
ReplyDeleteHempal Singh
Thank you so much sir for your kind appreciation. .Shalini has understood the spirit of the story so clearly and made a striking sketch.I know that she is an excellent daughter.
DeleteSo awesome... i rly proud to have a cute sister like anchal...truely heart touching..
ReplyDeleteThanks a lot. Please share your name.
DeleteAnd I am a proud father of Shalini
ReplyDeleteHempal Singh living in Newzealand at prsent
Welcome to the blog sir.
Deleteinspiring story
ReplyDeleteThank you so much. It would be nice to know your name.
DeleteVery inspiring story for everyone 🙂
ReplyDeleteThank you so much for reading Uphaar.
DeleteHeart touching storey which tells us great value of humanity.
ReplyDeleteThank you so much 🙏
Deleteबहुत प्रेरणा दायक कहानी, आंचल ने अपने स्नेह सिक्त आंचल को फैला कर समाज के वंचित वर्ग को उस में स्थान दे सभी के लिए एक आदर्श सधापित कर दिया। 'किसी की मुस्कुराहटों पे हो निसार, किसी के वास्ते हो तेरे दिल में प्यार किसी का दर्द मिल सके तो ले उधार ,जीना इसी का नाम है ।" मानवीय मूल्यों को दर्शाती यह कथा लेखक की मानसिकता की परिचायक है। आपकी लेखनी सदैव सशक्त रहे।
ReplyDelete"
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आभार 🙏
Deleteसच कहा आपने,किसी की मुस्कुराहटों पे निसार होना ही आपको जीवन के नए अनुभवों की ओर ले जाता है।
Heart touching story
ReplyDeleteThank you so much for reading Uphaar.
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